ठंड में भी कुशादा मकाँ ही रहा - Meem Alif Shaz

ठंड में भी कुशादा मकाँ ही रहा
मुफ़लिसों के लिए इम्तिहाँ ही रहा

जो जलाते रहे शौक़ से बस्तियाँ
उनका बाक़ी न कोई निशाँ ही रहा

भूलना चाहा तो फिर भुला ही दिया
इश्क़ लेकिन सदा दरमियाँ ही रहा

मुझ से जलता रहा बस किलसता रहा
इसलिए वह जहाँ था वहाँ ही रहा

फूल हो या कोई फूल सा जिस्म हो
ज़ीस्त के सच का इक तर्जुमाँ ही रहा

जिस तरफ़ भी गया बद्दुआ ही मिली
दिल मगर मेरा बस शादमाँ ही रहा

- Meem Alif Shaz
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