अब भलाई है हार जाने में

  - Vijay Anand Mahir

अब भलाई है हार जाने में
एक मुख़बिर है शामियाने में

काश वो आज याद आ जाए
मैं लगा हूँ जिसे भुलाने में

खोदने वाले खोद लाए हैं
साँप बैठे रहे ख़ज़ाने में

आप नज़रों से गर पिलाते तो
कौन जाता शराब - ख़ाने में

खींच आहिस्ता ड़ोर रिश्तों की
टूट जाए न आज़माने में

पेड़ गिरने पे ये हुआ महसूस
धूप कितनी है इस ज़माने में

सोच 'माहिर' अगर न आए तो
कुछ कसर है तिरे बुलाने में

  - Vijay Anand Mahir

More by Vijay Anand Mahir

As you were reading Shayari by Vijay Anand Mahir

Similar Writers

our suggestion based on Vijay Anand Mahir

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari