नगर ये नफ़रतों का है गुज़ारा हो नहीं सकता
न हो पाया किसी का वो हमारा हो नहीं सकता
बचाकर कुछ जमापूँजी बुढ़ापे के लिए रखना
ज़माने में यहाँ कोई सहारा हो नहीं सकता
तु ऐसे मोड़ पे आकर मिला है मुझको फिर से अब
जहाँ से मैं अभी तेरा सहारा हो नहीं सकता
As you were reading Shayari by Manish Yadav
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