दिल तोड़कर के मुस्कुराना है अदा उसकी
फिर अश्क ख़ुद के ही बहाना है अदा उसकी
आँखें बड़ी हैं ख़ूबसूरत उसकी और उनमें
काजल को बाहर तक लगाना है अदा उसकी
उससे नज़र ही मत मिलाना अब कभी भी तुम
बस इक नज़र में दिल चुराना है अदा उसकी
जब उसकी चलती है नहीं मुझपर तभी आड़े
टेड़े से ही फिर मुँह बनाना है अदा उसकी
उसको हमेशा से नए आशिक़ की चाहत है
बोली नए दिल की लगाना है अदा उसकी
बस इक दफ़ा मिलकर महीनों हिज्र कटवाना
सब आशिक़ों को यूँ सताना है अदा उसकी
सोना खरा है ये पता है अब उसे फिर भी
उस सोने को ही आज़माना है अदा उसकी
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