हक़ीक़त सपनों में, सपने हक़ीक़त में बदल जाए
कहीं तो फिर, तेरी नफ़रत मुहब्बत में बदल जाए
अगर मैं मयकदे को छोड़कर दरगाह आ जाऊं
तो फिर ये बद्दुआएं सारी मन्नत में बदल जाए
तिरा लश्कर तिरा परचम लिए कातिल बना तो है
कयामत हो के जीती शय शहादत में बदल जाए
मुझे कितना परेशां कर रखा है तेरे ज़ख्मों ने
तिरी ज़ुल्फ़ों के साएं, दर्द लज़्जत में बदल जाए
मुहब्बत और भी ज़्यादा हसीं हो जाए, समझे "प्रीत"
अगर नादानियां अपनी शरारत में बदल जाए !!
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