बँट चुका हिस्सा मेरा मुझमें बचा कुछ भी नहीं

  - Rahman Vaahid

बँट चुका हिस्सा मेरा मुझमें बचा कुछ भी नहीं
अब तो हिस्से में मेरे तेरे सिवा कुछ भी नहीं

बाद गिरने के मुझे लोगों ने तो जोड़ा बहुत
हाँ मगर मलबे से मेरे फिर बना कुछ भी नहीं

क्यों लगाए बैठे हो उम्मीद इंसानों से तुम
क्या नज़र में अब तुम्हारी वो ख़ुदा कुछ भी नहीं

तेरी यादों को मैं भूलूँ भूल जाऊँ तुझको भी
और इस दिल में रहे तुझसे जुड़ा कुछ भी नहीं

मैं परस्तार-ए-मोहब्बत हूँ अज़ल से दोस्तो
सामने मेरे तुम्हारी ये अना कुछ भी नहीं

  - Rahman Vaahid

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