चले थे वो, सो राह-ए-इश्क़ को दुश्वार कहते थे - Siddharth Saaz

चले थे वो, सो राह-ए-इश्क़ को दुश्वार कहते थे
न हमने इक सुनी उनकी, हमारे यार कहते थे

वो कहते थे हमें तुमसे मोहब्बत है, मोहब्बत है
और ऐसा इक नहीं दसियों, हज़ारों बार कहते थे

हमारे सैकड़ों दुख थे, और उसमें एक दुख ये भी
जो हम से हो के गुज़रे थे, हमें दीवार कहते थे

बड़े शहरों की जानिब कूच करना बेवकूफ़ी है
हमारे गाँव में कुछ लोग थे हुशियार, कहते थे

ख़ुदा ने भी कहानी इस तरह उस साल की लिक्खी
"कहानीकार हमको बख़्श दे" किरदार कहते थे

भले ही प्यार हो या हिज्र हो या फिर सियासत हो
कुछ ऐसे दोस्त थे हर बात पर अ'शआर कहते थे

शिफ़ा मौजूद थी हर मर्ज़ की बस उसकी आँखों में
करिश्मा-साज़ हमको देख ले , बीमार कहते थे

- Siddharth Saaz
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