ग़रीब ग़म के गया ही नहीं क़रीब तलक
ग़मों के साथ में ग़म आए ग़म नसीब तलक
गया था इश्क़ में लैला के क़ैस दश्त-ए-जुनूँ
तिरा ये इश्क़ मुझे ले गया सलीब तलक
लिबास-ए-हिज्र हुआ दिल के जिस्म की ज़ीनत
लिबास देख लो आ ही गया ग़रीब तलक
तड़प रहा है ये दिल खा के तीर फ़ुर्क़त का
उठा के ले चलो कोई इसे तबीब तलक
शजर ने ख़त यूँ दिया कह के अपने क़ासिद को
ये ख़त है आख़िरी पहुँचा दियो हबीब तलक
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