तेरा जिस दिन से इंतिख़ाब हुआ
यार उस दिन से मैं खराब हुआ
छोड़कर तुम चले गए कूचा
चूर हमसाए मेरा ख़्वाब हुआ
देख के तुझको सब हैं हैरत में
खार के दरमियाँ गुलाब हुआ
और उभरी है शख़्सियत मेरी
जब से मैं साहिब-ए-किताब हुआ
सर को ख़म कर लिया नदामत से
हश्र में जब मेरा हिसाब हुआ
खो दी बीनाई तुझको रोते हुए
मुझ पे नाज़िल नया अज़ाब हुआ
क़ैस से हो गई जुदा लैला
इश्क का इख़्तिताम-ए-बाब हुआ
वक़्त रहते जो हो गया बेदार
बस वही शख़्स कामयाब हुआ
हो गया जब ग़ुरूब सूरज तो
फिर नमू मेरा माहताब हुआ
तिश्ना-लब एड़ियाँ रगड़ते रहे
कब मयस्सर किसी को आब हुआ
जुज़ ये निकला शजर मोहब्बत का
अश्क़ बारी मेरा निसाब हुआ
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