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Hasrat Shayari

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ishq mujh ko nahin vehshat hi sahi
meri vehshat tiri shohrat hi sahi

qat'a kijeye na taalluq hum se
kuch nahin hai to adavat hi sahi

mere hone mein hai kya ruswaai
ai vo majlis nahin khilwat hi sahi

hum bhi dushman to nahin hain apne
ghair ko tujh se mohabbat hi sahi

apni hasti hi se ho jo kuch ho
aagahi gar nahin ghaflat hi sahi

umr har-chand ki hai barq-e-khiraam
dil ke khun karne ki furqat hi sahi

hum koi tark-e-wafa karte hain
na sahi ishq museebat hi sahi

kuch to de ai falak-e-na-insaaf
aah o fariyaad ki ruksat hi sahi

hum bhi tasleem ki khoo daalenge
be-niyaazi tiri aadat hi sahi

yaar se chhed chali jaaye asad
gar nahin vasl to hasrat hi sahi
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही

क़त्अ कीजे न तअल्लुक़ हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही

मेरे होने में है क्या रुस्वाई
ऐ वो मज्लिस नहीं ख़ल्वत ही सही

हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही

अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही

उम्र हर-चंद कि है बर्क़-ए-ख़िराम
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही

हम कोई तर्क-ए-वफ़ा करते हैं
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही

कुछ तो दे ऐ फ़लक-ए-ना-इंसाफ़
आह ओ फ़रियाद की रुख़्सत ही सही

हम भी तस्लीम की ख़ू डालेंगे
बे-नियाज़ी तिरी आदत ही सही

यार से छेड़ चली जाए 'असद'
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही
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Mirza Ghalib
तुमको भी ग़र ठोकर में अपनी ये ज़माना चाहिए
अमा मियाँ कुछ तो हुनर तुमको भी आना चाहिए

आते हैं तेरी गली हर रोज़ फ़क़त दीदार वास्ते
कभी - कभी तुम्हें भी मेरी गली आना चाहिए

तोहफे में मिला गुलाब हाथों में लिए फिरते हो
इश्क़ है अभी नया नया इसे अभी छुपाना चाहिए

ख़्वाबों में ही आना मिलने मुझसे तुम हर बार
दरमियाँ अपने नहीं मुझको ये ज़माना चाहिए

आशिक़ हूँ तुम्हारा मुझे आवारा न समझना तुम
यूँ बेरुख़ी से इश्क़ नहीं आज़माना चाहिए

कितनी हसरत लिए आते हैं गली में तुम्हारी
तुम्हें भी तो एक दफ़ा दरीचे तक आना चाहिए

अच्छी लगती है अना शख़्सियत पर तुम्हारी
कुछ गुरुर हमें भी अब खुद पर आना चाहिए

रूठने का हक़ तुम्हारा ही नहीं मेरा भी तो है
मैं जो रूठूँ कभी तुम्हे भी मुझे मनाना चाहिए
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Prashant Shakun
इतना आसान तो नहीं था इश्क़
अब तो करता है बच्चा बच्चा इश्क़

इश्क़ हा-मीम इश्क़ है यासीन
इश्क़ अलिफ़-लाम-मीम ताहा इश्क़

हम ने पाया है इश्क़ विरसे में
इश्क़ आदम है और हव्वा इश्क़

रौशनी छीने है निगाहों की
पूछो याक़ूब से कि है क्या इश्क़

थोड़े गंदुम के बदले में लेने
आई है मिस्र में ज़ईफ़ा इश्क़

इश्क़ में हुस्न भी रहा आगे
इश्क़ यूसुफ़ है और ज़ुलैख़ा इश्क़

याद है न वो किस्सा ए यूनुस
मछली के पेट में था ज़िंदा इश्क़

बन के मूसा की हसरत ए दीदार
तूर को नूर से जलाता इश्क़

हम को हासिल है अज़ ख़लीलुल्लाह
आग को बाग़ करने वाला इश्क़

बेटे से एड़ियां रगड़वाता
हाजिरा से सई कराता इश्क़

कितने मुर्दों को ज़िन्दगी दे दी
इश्क़ ए ईसा भी था ग़ज़ब का इश्क़

वक़्त ए मिलाद ए मुस्तफ़ाई पर
काबतुल्लाह को झुकाता इश्क़

देखो सहबा में मुर्तज़ा के लिए
डूबे सूरज को खींच लाया इश्क़

ज़ख़्म खा कर बिलाल हंसता है
दंग है देख कर उमैया इश्क़

आज भी लग रहा है कर्बल में
सर को पकड़े हुए है बैठा इश्क़

बाबा गंज ए शकर बताते हैं
मुझको शक्ल ए शकर मिला था इश्क़

अपने दांतों को ख़ुद ही तोड़ दिया
वाह क़रनी का ये अनूठा इश्क़

ग़ौस ए आज़म के एक इशारे पर
लौट आया है एक माँ का इश्क़

तलवा ए ग़ौस सर पे रखने को
अपनी गर्दन झुकाए बैठा इश्क़

एक कासे में हुक्म ए ख्वाजा पर
एक सागर समेट लाया इश्क़

इश्क़ शीरीं है इश्क़ है फरहाद
इश्क़ मजनूं है और लैला इश्क़

इश्क़ नदियों में फेंक देता है
और मेले में है गुमाता इश्क़

इश्क़ को हल्का जानने वालो
शहर का शहर फूँक देगा इश्क़

दिल में इक दर्द बन के बैठा था
आँख से अश्क बन के निकला इश्क़

वो कभी खुल के मुस्कुरा न सका
जिसने बर्बाद होते देखा इश्क़

ये जनाज़ा जो उठ रहा है न
कहते हैं इस को भी हुआ था इश्क़

आज के दौर में मेरे भाई
सिर्फ़ धोखा है सिर्फ धोखा इश्क़

देखो ! किस काम में मुझे लाए
मुझ निकम्मे का एक तरफ़ा इश्क़

ये दिलासा मुझे सँभाले है
अब किसे है नसीब सच्चा इश्क़

दिल ! तू बदनाम हो गया कैसे
क्या किया अच्छा अच्छा इश्क़

आओ शादाब उससे बोल ही दें
कौन सा इश्क़ यार कैसा इश्क़
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Shadab Javed

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