ये आबशार ये नदियाँ गुलाब ले जाओ
ये कहकशां ये क़मर आफ़ताब ले जाओ
नक़ाब ओढ़ के बिल्कुल परी सी लगती है
बतौर-ए-ख़ास ये उसका नक़ाब ले जाओ
हमारी आँखों से मुमकिन नहीं दिफा होना
ख़ुदा के वास्ते तुम अपने ख़्वाब ले जाओ
फिराक़-ए-यार है तहरीर जितने बाबों में
वो बाब छोड़ के सारी किताब ले जाओ
जनाब-ए-क़ैस से महशर में ये कहेगा ख़ुदा
लो क़ैस इश्क़ का अपने ख़िताब ले जाओ
हमारे सीने में ज़ाया रखा है बरसों से
मता-ए-जाँ दिल-ए-ख़ाना ख़राब ले जाओ
भटक रहा है वो सदियों से प्यासा सहरा में
कोई तो क़ैस की ख़ातिर ये आब ले जाओ
उठा के हाथ दुआ को कहा ये यूसुफ़ ने
ज़ुलेख़ा अपना ये हुस्न-ओ-शबाब ले जाओ
वो गाँव आई है आँखों में मयक़दा लेकर
शराब चाहिए जिसको शराब ले जाओ
ऐ शहर-ए-जान की जानिब को जाने वाले बशर
शजर की सम्त से उसका हिजाब ले जाओ
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