जो सोचा न था ना-गहाँ हो गया है
ये दिल इश्क़ में ला-मकाँ हो गया है
कहें क्या ये तक़दीर के खेल हैं सब
गदा कल का अब आसमाँ हो गया है
बदन पिंजर-ए-उस्तुख़्वाँ हो गया है
जला है ये दिल और धुआँ हो गया है
जिधर देखिए है उधर आज नफ़रत
ख़ुदा कैसा हिंदोस्ताँ हो गया है
ढलेगी जवानी तो टूटेगा इक दिन
तुझे हुस्न पर जो गुमाँ हो गया है
नहीं कोई गर्दिश में अपना कहीं भी
हर इक रब्त अब राएगाँ हो गया है
जिसे तेरी सोहबत ने ऐ इश्क़ मारा
वो रुसवा-ए-बज़्म-ए-जहाँ हो गया है
भुलाते भुलाते सितम बेवफ़ा के
कोई रिंद पीर-ए-मुगाँ हो गया है
सितम हिज्र तेरा कि यूँ दीद-ए-नम पर
हर इक अश्क बार-ए-गराँ हो गया है
Read Full