यूँ भी हैं पाक-ज़ाद सिगरेटें
दिल को करती हैं शाद सिगरेटें
पहले वो उसके बाद सिगरेटें
अब हैं बाक़ी मुराद सिगरेटें
पहले फुकता है इश्क़ में इक दिल
और फिर उसके बाद सिगरेटें
अब ख़यालों में वो नहीं आता
सिर्फ़ रहती हैं याद सिगरेटें
तर्क -ए- निस्बत में कुछ नहीं था और
जो भी थी सब फ़साद सिगरेटें
फूँकती ही नहीं मेरे दिल को
हाय ये ना-मुराद सिगरेटें
जब भी महफ़िल में बैठ जाता हूँ
मुझ को देती हैं दाद सिगरेटें
तेरी यादों से मेरी हस्ती को
देती हैं इम्तिदाद सिगरेटें
ऐसे आती है ये लब-ए-साहिल
जैसे हों हूर-ज़ाद सिगरेटें
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