चाहता मैं भी यही हूँ कि हो इक़रार की ईद
आज तक होती रही है तेरे इनकार की ईद
'ईद का दिन है तू रसमन ही गले से लग जा
कर ही दे आज मुकम्मल दिल-ए-बीमार की ईद
आ भी जा अर्सा हुआ तकते हुए तेरी राह
क्या ख़बर आख़िरी हो तेरे तलबगार की ईद
छोड़ कर सारे गिले-शिकवे मेरे भाई आ
चल मोहब्बत से मनाएँगे हम इस बार की ईद
जिस तरफ़ देखिए महँगाई नज़र आती है
सेठ की ईद है सामान के बाज़ार की ईद
लग के देती है कलेजे से जो ईदी बोतल
शाम ढलते ही शुरू होती है मय-ख़्वार की ईद
रोज़ हर बज़्म से पाता है वो 'साहिल' तोहफ़े
रोज़ हर बज़्म में होती है अदाकार की ईद
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