जब भी माज़ी में खोता है
दीवाना टूट के रोता है
सब ख़ुशियाँ ख़्वाब हुईं जैसे
दिन रात यहाँ दिल रोता है
देखो तो मेरी पामाली पर
दिल क्या पत्थर भी रोता है
हम चंद दिनों में सीख गए
इस इश्क़ में क्या क्या होता है
ख़ुशियों को बाँटने वाला ही
ख़ुद दर्द ग़मों के ढोता है
पत्थर अक़्लों पर पड़ते हैं
ऐसा ही इश्क़ में होता है
दिल इस दुनिया से ऊब गया
वो गोली खा कर सोता है
रह रह कर अश्कों का चश्मा
दिल के ज़ख़्मों को धोता है
होने लगता है हार्ट अटैक
जब ज़िक्र-ए-ग़ज़ाला होता है
अब फ़स्ल-ए-इश्क़ नहीं उगती
क्यों बीज वफ़ा के बोता है
इस नाम-ए-इश्क़ को छोड़ इस से
अब ग़म में इज़ाफ़ा होता है
साहिल है यही मर्ज़ी-ए-ख़ुदा
हर पल क्यों रोना रोता है
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