"नज़र" - ABHISHEK RANJAN

"नज़र"

नज़र के सामने रहना नज़र के पास ही रहना
नज़र की जो ज़रूरत हो वही अब काम तुम करना

मुझे मालूम है अब ये ठिकाना हो नहीं सकता
नज़र भर देख भी तो लूँ गुजारा हो नहीं सकता

नज़र की बात करता हूँ नज़र पे रात करता हूँ
फ़रेबी हुस्न कहती है तो उस से जा झगड़ता हूँ

मुझे तो शौक़ नज़रों का तुम्हारा क्या करूँ बोलो
नज़र भर देख लो जाना मैं दुनिया छोड़ जाऊँगा

नज़र का खेल है सब कुछ नज़र का जाल है सब कुछ
नज़र देखो गिराता है नज़र देखो उठाता है

नज़र चाहे बिगाड़ेगी नज़र चाहे सुधारेगी
नज़रिया है तुम्हारा क्या नज़र ख़ुद ही बताएगी

नज़र के जाल में पड़ने से बेहतर मर ही जाना है
नज़र गर डालनी है तो चलो पुस्तक पे डालो तुम
सही 'रंजन' कहा तुमने नज़र पे क्या भरोसा है

- ABHISHEK RANJAN
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