जिस किसी पर भी तेरा दर खुल गया है
ये समझ लीजे मुक़द्दर खुल गया है
क्यों तलाशें राह बाहर की कोई जब
रास्ता अंदर ही अंदर खुल गया है
एक नज़र में लुट गया है दिल सरापा
एक ही चाबी से घर भर खुल गया है
एक नदी सेहरा की होना चाहती है
एक नदी जिस पर समन्दर खुल गया है
जानते तो थे मगर दौरान-ए-मुश्किल
ये ज़माना और बेहतर खुल गया है
यार अब तो बंद कर बातें बनाना
राज़ तेरा शोबदागर खुल गया है
ग़लतियाँ गर्दन की अब गिनवाई जायें
किसके हाथों में था ख़ंजर खुल गया है
चंद रोज़ अब कुछ नया होना नहीं है
मीर का एक शेर हम पर खुल गया है
दिल गली वीराँ रही कुछ दिन तेरे बिन
अब वहाँ यादों का दफ़्तर खुल गया है
भास्कर यूँ ही नहीं खुलता कहीं भी
ध्यान से सुनिए उसे गर खुल गया है
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