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Sukoon Shayari

Here is a curated collection of Sukoon shayari in Hindi. You can download HD images of all the Sukoon shayari on this page. These Sukoon Shayari images can also be used as Instagram posts and whatsapp statuses. Start reading now and enjoy.

मिरी हयात ये है और ये तुम्हारी क़ज़ा
ज़ियादा किस से कहूँ और किस को कम बोलो
तुम अहल-ए-ख़ाना रहे और मैं यतीम हुआ
तुम्हारा दर्द बड़ा है या मेरा ग़म बोलो

तुम्हारा दौर था घर में बहार हँसती थी
अभी तो दर पे फ़क़त रंज-ओ-ग़म की दस्तक है
तुम्हारे साथ का मौसम बड़ा हसीन रहा
तुम्हारे बाद का मौसम बड़ा भयानक है

हज़ारों क़र्ज़ थे मुझ पर तुम्हारी उल्फ़त के
मुझे वो क़र्ज़ चुकाने का मौक़ा तो देते
तुम्हारा ख़ून मिरे जिस्म में मचलता रहा
ज़रा से क़तरे बहाने का मौक़ा तो देते

बड़े सुकून से तुम सो गए वहाँ जा कर
ये कैसे नींद तुम्हें आ गई नए घर में
हर एक शब मैं फ़क़त करवटें बदलता हूँ
तुम्हारी क़ब्र के कंकर हों जैसे बिस्तर में

मैं बोझ काँधों पे ऐसे उठा के चलता हूँ
तुम्हारा जैसे जनाज़ा उठा के चलता था
यहाँ पे मेरी परेशानी सिर्फ़ मेरी है
वहाँ कोई न कोई कांधा तो बदलता था

तुम्हारी शम-ए-तमन्ना बस एक रात बुझी
चराग़ मेरी तवक़्क़ो के रोज़ बुझते हैं
मैं साँस लूँ भी तो कैसे कि मेरी साँसों में
तुम्हारी डूबती साँसों के तीर चुभते हैं

मैं जब भी छूता हूँ अपने बदन की मिट्टी को
तो लम्स फिर उसी ठंडे बदन का होता है
लिबास रोज़ बदलता हूँ मैं भी सब की तरह
मगर ख़याल तुम्हारे कफ़न का होता है

बहुत तवील कहानी है मेरी हस्ती की
तुम्हारी मौत तो इक मुख़्तसर फ़साना है
वो जिस गली से जनाज़ा तुम्हारा निकला था
उसी गली से मिरा रोज़ आना जाना है

मैं कोई राह हूँ तुम राह देखने वाले
कि मुंतज़िर तो मरा पर न इंतिज़ार मरा
तुम्हारी मौत मिरी ज़िंदगी से बेहतर है
तुम एक बार मरे मैं तो बार बार मरा
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Zubair Ali Tabish
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आई जब उन की याद तो आती चली गई
हर नक़्श-ए-मा-सिवा को मिटाती चली गई
हर मंज़र-ए-जमाल दिखाती चली गई
जैसे उन्हीं को सामने लाती चली गई

हर वाक़िआ क़रीब-तर आता चला गया
हर शय हसीन-तर नज़र आती चली गई
वीराना-ए-हयात के एक एक गोशे में
जोगन कोई सितार बजाती चली गई

दिल फुंक रहा था आतिश-ए-ज़ब्त-ए-फ़िराक़ से
दीपक को मय-गुसार बनाती चली गई
बे-हर्फ़ ओ बे-हिकायत ओ बे-साज़ ओ बे-सदा
रग रग में नग़्मा बन के समाती चली गई

जितना ही कुछ सुकून सा आता चला गया
उतना ही बे-क़रार बनाती चली गई
कैफ़िय्यतों को होश सा आता चला गया
बे-कैफ़ियों को नींद सी आती चली गई

क्या क्या न हुस्न-ए-यार से शिकवे थे इश्क़ को
क्या क्या न शर्मसार बनाती चली गई
तफ़रीक़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का झगड़ा नहीं रहा
तमईज़-ए-क़ुर्ब-ओ-बोद मिटाती चली गई

मैं तिश्ना-काम-ए-शौक़ था पीता चला गया
वो मस्त अँखड़ियों से पिलाती चली गई
इक हुस्न-ए-बे-जिहत की फ़ज़ा-ए-बसीत में
उड़ती गई मुझे भी उड़ाती चली गई
फिर मैं हूँ और इश्क़ की बेताबियाँ 'जिगर'
अच्छा हुआ वो नींद की माती चली गई
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Jigar Moradabadi
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मंज़िल-ए-मकसूद पा के भी सुकूँ हासिल नहीं
आ गया मैं जिस जगह शायद मेरी मंज़िल नहीं

आसरा है कश्तियों को साहिल-ए- आबाद का
क्या सफ़ीनें काम आये गर कोई साहिल नहीं

हौसले भी पस्त होते देखे हैं उनके यहाँ
कहते थे जो बारहा के ज़िन्दगी मुश्किल नहीं

घोटते हैं सब गला जब अपने अरमानों का याँ
कौन फिर दावा करे के अपना वो क़ातिल नहीं

पीठ पे खंज़र चुभो के इश्क़ में तू ख़ुश न हो
होश खो बैठा मगर वो शख़्स है ग़ाफ़िल नहीं

खींचती है ख़ाक सबको बारहा अपनी तरफ
इसमे जब तक मिल न जाये आदमी कामिल नहीं

लाश अपनी सर पे रखकर फिर रहा हूँ दर ब दर
मेरे जैसा दुनिया में होगा कोई हामिल नहीं

ढ़ूंढ़ना मुझको न यारो इस जहां की भीड़ में
भीड़ का हिस्सा "अमन" हूँ भीड़ में शामिल नहीं
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Aman Kumar Shaw "Haif"

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