राहत, एक ऐसी शख़्सियत है जिसके नाम में ही सुकून है और जो राहत साहब को जानते हैं, पढ़ते हैं, सुनते हैं, समझते हैं, उनके लिए यह सुकून नहीं जुनून है और यही जुनून उनकी शायरी में भी झलकता है...
इसी सिलसिले में उनका एक शेर देखिए कि
Nadeem Khan
August 9, 2022
राहत, एक ऐसी शख़्सियत है जिसके नाम में ही सुकून है और जो राहत साहब को जानते हैं, पढ़ते हैं, सुनते हैं, समझते हैं, उनके लिए यह सुकून नहीं जुनून है और यही जुनून उनकी शायरी में भी झलकता है...
इसी सिलसिले में उनका एक शेर देखिए कि
राहत साहब का ये शेर न जाने ऐसे कितने ही लोगों के लिए हौसला बन के सामने आता है जो अपनी ज़िंदगी से दो-दो हाथ कर रहे हैं।
तो अभी मैंने सिर्फ़ राहत की बात की है और अगर हमें राहत इंदौरी साहब को जानना है, समझना है तो हमें आज से 70 साल पीछे जाना पड़ेगा।
1 जनवरी 1950 को इंदौर की एक छोटी सी गली रानीपुरा में शायरी के बादशाह ने अपनी पहली साँस ली और नाम रखा गया "राहत क़ुरैशी"। तब न जाने कितने शेर, कितनी ग़ज़लें, कितनी नज़्में अपने को ज़िंदा होते देख रही होगी। शायद तब कोई नहीं जानता होगा कि एक रोज़ ये शख़्स उर्दू-अदब और मुशायरों की तस्वीर बदल कर रख देगा।
शायद तभी ख़ुदा ने उनके हिस्से में यह शेर डाला कि
ख़्वाब को हक़ीक़त में कैसे बदला जाता है यह जानना है तो पूछिए रिफ़तउल्लाह ख़ान के मँझले बेटे राहत क़ुरैशी से, जिन्होंने अपनी मेहनत, लगन, जुनून और जज़्बे से उस वक़्त के बड़े-बड़े सूरमाओं के आगे अपना लोहा मनवाया और कहा कि —
राहत इंदौरी साहब के शुरुआती दिन कुछ अच्छे नहीं थे। उनके वालिद कपड़े की मिल में काम करते थे। ज़िंदगी का गुज़ारा हो जाता था या यूँ कहे कि ज़िंदगी गुज़ारी जा रही थी लेकिन कौन जानता था कि इक दिन इसी घर का चराग़ ज़माने में ऐसी रौशनी करेगा कि दुनिया देखेगी और जितनी दफ़ा देखेगी, हैरान होती जाएगी और हैरान भी क्यों ना हो, क्योंकि आप ऐसे शख़्स से मुख़ातिब होते हैं जिसकी झोली में ख़ुद ख़ुदा भी आसमान डाल देता है
उनका एक शेर है जो इस बात की गवाही देता हैं कि–
राहत साहब ने अपना अदबी सफ़र देवास के एक ऐसे मुशायरे से शुरू किया जहाँ उस वक़्त के बड़े-बड़े सूरमा तशरीफ़ लाए हुए थे। जब राहत साहब की पढ़ने की बारी आई तब उनके त'आरूफ़ में कहा गया कि 'लीजिए सुनिए जनाबे राहत को' फिर उसके बाद क्या था, राहत साहब ने ऐसे-ऐसे शेर पढ़े कि मुशायरा लूट लिया। उसी के बाद राहत साहब, राहत से राहत इंदौरी बनकर पूरी दुनिया में अपनी ग़ज़लों की ख़ुशबू बिखेरने में लग गए।
उसी मुशायरे में राहत साहब ने एक शेर पढ़ा था
राहत साहब के अश'आर इतने संजीदा और मुकम्मल होते थे कि कोई बहरा भी सुन ले। राहत साहब को उनके अनोखे अंदाज़ के लिए भी ख़ूब पसंद किया जाता है। राहत साहब ने ख़ुद का ऐसा अंदाज़ पैदा किया जिसका सानी इस पूरी काएनात में न हुआ है और न ही होगा। वह जब मंच पर चढ़ते तो हज़ारों लाखों की तादाद में लोग खड़े होकर उनका इस्तिक़बाल करती और जब वह शेर पढ़ने के लिए माइक पर आते तो मानो ऐसा लगता जैसे सुनहरी धूप में बारिश होने वाली है, ख़ुदा कुछ वक़्त अपनी काएनाती मसरूफ़ियत से हटकर ख़ुद शायरी सुनने के लिए बेताब हो रहा होगा और जिस वक़्त वो अपने अंदाज़ से अपना आग़ाज़-ए-सफ़र करते तो मानो यूँ लगता था जैसे ख़ुदा ख़ुद उनकी ज़बान में बैठ गया हो उनसे बुलवा रहा हो।
अक्सर अपने आग़ाज़-ए-सफ़र में वो ये शेर पढ़ते कि–
उनका ये अंदाज़ सुनने वालों को अलग ही दुनिया में ले जाता था। जब वो पढ़ते तो ख़ुद से जुदा हो जाते थे, पहले धीरे से एक मिसरे को पढ़ना और फिर अपने चारों तरफ़ इक कशिश भरी निगाह से देखना और फिर जब दोबारा दूसरे मिसरे को पढ़ते तो मानो इंदौर से दिल्ली तक आवाज़ पहुँचती थी। वह हाथों को इस तरह से उठाते कि मोहब्बत करने वाला दुआओं के मआनी समझता और हुकूमत उसे ललकार समझती थी।
इसी सिलसिले में उनका एक शेर हैं कि –
वो कहते हैं ना ज़िंदगी कभी न कभी एक नया मोड़ लेती है ठीक वैसे ही इतनी दौड़ भाग के बीच राहत साहब की मुलाक़ात आज की सबसे मशहूर और मुकम्मल शायरा 'अंजुम रहबर' जी से हुई जिन्होंने राहत को राहत इंदौरी बनाया और राहत साहब नूर बन के ज़माने में फैल गए।
अंजुम जी का ये शेर इस बात की तर्जुमानी करता है कि –
राहत साहब की दोस्ती की बात करें तो यूँ तो हर छोटे से बड़ा शायर उनकी मक़बूलियत और हुनर का काइल था। लेकिन राहत साहब जिस शख़्स के काइल थे वो थे 'जनाब जौन एलिया साहब'। यह बात राहत साहब ने ख़ुद एक इंटरव्यू में कही है कि वह जब भी कभी वो करांची या लाहौर जाते या फिर जौन साहब कभी हिंदुस्तान का रुख़ करते तो दोनों एक दूसरे से मिले बग़ैर नहीं रह पाते। इसकी एक वजह यह भी है कि दोनों एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते थे वे जानते थे कि जब तक कोई हमसुख़न और जान से प्यारा साथ न हो तो पीने में मज़ा कहाँ आता है। दोनों के कई बार साथ में महफ़िल सजाने के मौके आए तो कई बार महफ़िलों ने इन दोनों शायरों को सजाया है। कभी बोतल और गिलास में अपने शेर तैरते हुए देखते तो कभी दुनिया के ग़म में डूब जाते हैं। राहत साहब का ये शेर इस बात की गवाही देता है कि –
अब बात करते हैं राहत साहब के अदबी सफ़र की तो राहत साहब जितने संजीदा थे, नर्म थे, उतने ही ज़्यादा सख़्त भी थे। वो जब भी अपने आसपास कुछ ग़लत होता देखते तो चुप नहीं रह पाते थे, जैसे कि आज के शायर और कवि लोग करते हैं। उन्होंने देवास के पहले मुशायरे से लेकर दिल्ली के लाल क़िले तक से अपनी आवाज़ उठाई है फिर वह चाहे दूसरे मुल्क की किसी हुकूमत को ललकारा हो या हमारे मुल्क की सरकारों को आईना दिखाया हो,
उनका एक शेर इस बात का गवाह है कि –
यह बात मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि उन्होंने इस शेर के ज़रिए किस मुल्क को अपनी हिदायत पेश की है।
राहत साहब अपने वतन से, अपने शहर से बहुत मोहब्बत करते थे। उनके अंदर का हिंदुस्तानीपन उनके शेरों में छलकता था।
इसी सिलसिले में एक शेर है कि –
ऐसे शेर, ऐसे शब्द कोई सच्चा हिंदुस्तानी ही बोल सकता है।
राहत साहब अपनी हर मौजूदा दौर की हुकूमतों से बहुत नाराज़ रहे फिर चाहे वह 1980 की हुकूमत हो या 2014 की। उन्होंने जहाँ भी, जब भी ग़लत होते देखा वे अपने आप को रोक नहीं पाए।
कभी-कभी तो उन्होंने सरकारों के बजाय लोगों को जगाने की कोशिश भी की।
उनका एक शेर इस बात को बहुत संजीदगी से पेश करता है –
राहत साहब बोलते रहे, चिल्लाते रहे, अपने मुल्क की अम्न-परस्ती के लिए दुआएँ करते रहे। कई लोग, कई नामचीन हस्तियाँ हुकूमत की आँधी में बह गई। कई ज़बानें ख़ामोश हो गई, किसी ने अपनी कलम बेच दी तो किसी ने अपना ज़मीर। लेकिन एक आवाज़ जो कभी ख़ामोश नहीं हुई, जिनके आगे हुकूमत भी सर झुका देती थी, जिनकी शायरी से दुश्मन भी ख़ौफ़ खाते थे और अपनी बेबाकी से उन्होंने उन लोगों को भी ललकारा है जो इस मुल्क को खोखला करने में लगे थे।
उनका एक शेर जिसने मुल्क को तोड़ने वाली आवाज़ें बंद की और लोगों की मुँह-ज़ुबानी बना –
वो कहते हैं ना जो ख़ुदा को सबसे अज़ीज होता है ख़ुदा उसे अपने पास बुला लेता है। ठीक उसी तरह शायरी का बादशाहा और सारी दुनिया का अज़ीज़ 'राहत इंदौरी' आज़ादी के ठीक 4 दिन पहले यानी 11 अगस्त 2020 को इस दुनिया की बंदिशों को तोड़कर आज़ाद हो गया। राहत साहब का इंतक़ाल यूँ तो हार्टअटैक की वजह से हुआ था लेकिन कई मुशायरों और कवि सम्मेलनों ने अपने राहत की याद में साँस लेना तक छोड़ दिया और आज भी वह अपने शायर के लिए मुंतज़िर है। राहत साहब के इंतक़ाल के बाद कई मुशायरे और कवि सम्मेलनों की रौनक ही उड़ गई। जब भी कभी कोई नया मुशायरा होता तो लोग अपने हरदिल-अज़ीज़ शायर को याद किए बिना नहीं रह पाते थे।
राहत साहब का इंतक़ाल एक ऐसे वक़्त में हुआ था जब मुल्क को उनके जैसे बेबाक, हरफ़नमौला और वतन-परस्त शायर की बहुत ज़रूरत थी। राहत साहब कहते थे कि वे लगभग दुनिया के एक चौथाई हिस्सों में अपनी शायरी को लेकर घूमे हैं। उन्होंने दुनिया के कई देशों में जाकर अपनी ख़ुशबू से कई महफ़िलें आबाद की और शायरी से लोगों का दिल जीता था। लेकिन अपने शहर से, अपनी मिट्टी से मोहब्बत करने वाले राहत ने अपनी आख़िरी साँसें भी अपने ही शहर इंदौर के अरबिंदो हॉस्पिटल में ली।
मौत को भी आँख दिखाने वाले राहत ने शायद इसी दिन के लिए ये शेर लिखा होगा कि –
शायरी का एक सितारा दुनिया को छोड़कर एक ऐसी दुनिया में चला गया जहाँ फ़रिश्ते, पयंबर और ख़ुदा उनका इंतज़ार कर रहे थे। ख़ुदा भी ग़ज़लें सुनने के लिए बेताब हो रहा होगा, तभी एक ऐसे सितारे को दो हिस्सों में बाँट दिया और एक हिस्सा अपने पास और एक दुनिया वालों को दे दिया यानी उनके शेर, उनकी ग़ज़लें आज भी उनकी कमी पूरी करते हैं।
उनके कुछ शेर ऐसे हैं जो यह बताते हैं कि राहत साहब जानते थे कि कब क्या होने वाला है। उनका एक शेर है –
लोग राहत साहब को देख नहीं सकते, सुन नहीं सकते, उनके गले नहीं लग सकते, उनके रूबरू बैठकर शेर नहीं सुन सकते लेकिन उनकी आवाज़, उनकी ग़ज़लें, उनकी बातें, उनका अंदाज़ कभी ये महसूस नहीं होने देते कि राहत साहब हमारे बीच में नहीं हैं। राहत साहब न जाने कितने दिलों में ज़िंदा हैं। न जाने कितनी आँखों को वह बीनाई देकर गए हैं और ये आँखें कभी उनको अपने से दूर नहीं होने देगी और अपने राहत को तब तक ज़िंदा रखेगी जब तक कि यह दुनिया काएम है।
अपनी मौत के वक़्त भी अपनी वतन-परस्ती का ख़्याल रखने वाले ऐसे हिंदुस्तानी शायर के लिए आख़िर में उन्हीं का एक शेर –
Arbab Nawab
Kisi ke zarf ko itna na Azma Arbab Har Shakhs Apne Aap Me Bada Lajawab Hai
Vishal Chandanshive
Bahut Khub Likha hai Janaab Nadeem sahab 😊😊😊
Pradeep Kumar
Ankur Bhai 102
Amaan Javed
👍🏼👍🏼
Amaan Javed
👍🏼👍🏼
pari strings of the words
👌👌👌
pari strings of the words
👌👌👌
Piyush Ratnawat
Bhai 🔥❤️
Raunak Karn
❤️❤️❤️
Raunak Karn
❤️❤️❤️
Md Anayat
Humein shayari mein dilchaspi rahat sahab ko sun kar hi hua tha....😢😢
Dileep Kumar
राहत साहब मेरे पसंदीदा शायर है..... और उन पर इस तरह का ब्लॉग मैं ने पहले कभी नहीं पढ़ा....बहुत ही बेहतरीन...बहुत ही उम्दा
Umesh Maurya
बहुत खूब
shaan manral
Excellent blog👏👏
100rav
उम्दा प्रस्तुति ❤️❤️
Javed Aslam
Achcha likhte ho aap. 👍
Sandeep dabral 'sendy'
❤️❤️
SARVESH DUBEY
Nice
Atiullah Shah
❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
Young Lord
❤️😍
Akash Rajpoot
My favorite❤️❤️❤️
Akash Rajpoot
My favorite❤️❤️❤️
Sohil Barelvi
Rahat Sahab Kamaal Hain Woh DiloN Hamesha Zinda Rahengy ❤️❤️
Badr Menhdawali
❤❤