मीर से शाइर हर ज़माने में नहीं हुआ करते। ये बात ग़ालिब ने यूँ ही नहीं शेर में बयाँ की थी। ये जानते हुए कि मीर ग़ालिब की नौजवानी की शाइरी देखकर ये कह गये थे कि उस्ताद मिला तो ठीक वरना मुहमल बकेगा, ग़ालिब ने ये शेर कहा कि 


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ग़ालिब बड़े शाइर हैं। वो जानते हैं नगीना क्या है, पत्थर क्या है।


मीर उर्दू शायरी में ख़ुदा की हैसियत रखते हैं| दिल के ज़ख़्मों पर मरहम का काम करने वाले इनके लफ़्ज़ वो तिलिस्म रखते हैं कि क्या कहने


मसलन कुछ अशआर देखें!


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फ़रमाते हैं दिल का टूटना भी क्या देखने लायक़ है, कि यहाँ दिल की कई इमारतें ग़मों ने ढायी हैं। मानो इमारत ढाने वाले ये ग़म, ग़म न हुए कोई कारीगर हो गए जो इस कारीगरी में माहिर हैं! सच है, इक लफ़्ज़ के जादूगर ने ग़मों की शानदार कारीगरी को पहचान ही लिया। 


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लोग मुझसे मेरे ख़ून के आँसू रोने का सबब पूछते हैं। क्या इन कमबख़्तों को उस बेवफ़ा का रंग नहीं दिखता, वो बेवफ़ाई नहीं दिखती जिसने मेरा ये हाल किया है। ये रंग जो बेवफ़ाई का है कहीं लाल ही तो नहीं जो शाइर की आँखों को जंग का मैदान किये हुए है। शाइर अपने एहसास से शिकस्त खा कर जो अपने गाँव लौटता है तो लोग रोने का सबब पूछते हैं। ये पूछा जाना क्या मज़ाक उड़ाना नहीं है। शाइर ग़ुस्से में ये शेर कहता है!


क्यूँ मीर कुछ खुल रहे हैं क्या आप पर? 


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हाए, क्या कहने! क्या चमक है यार के हुस्न की, कि शाइर को ये कहना पड़ गया कि काबा का दीया हो कि सोमनाथ का, नूर तो यार का है सब में! हाय! वो नूर कैसा होगा जिसमें ख़ुदा के घर को भी रौशन किया है! वाह मीर! आह मीर!


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इक नौजवान शाइर उमैर नज़्मी का शेर ज़ेह्न में आता है,


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मोहब्बत ज़ात का इज़हार भर जो महदूद |=| Confined होती तो ज़िंदगी में यूँ असरअंदाज़ नहीं होती! ये ज़रूर कोई कायनाती शै |=| Cosmic Entity है। अब आते हैं मीर के शेर पर!


मीर इश्क़ को define कर रहे हैं। इश्क़ मीर के मुताबिक़ एक इंसान से ज़्यादा वाली शै है। 


कहा गया है, इंसान अधूरा है और अपने अधूरे हिस्से को ढूँढ रहा हो! इश्क़ मगर एक मुकम्मल चीज़ जान पड़ती है। इश्क़ ख़ुद का ही आशिक़ है, ख़ुद का ही माशूक़। मानो इश्क़ को होने के लिए इंसानी दिल ओ ज़ात की ज़रूरत नहीं है, वो ख़ुद ही में फैलकर अपना वुजूद मनवा ही लेता है।


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मानो अगली नस्ल को ये शाइर चिट्ठी लिखकर जो उसने ज़िंदगी जी कर सीखा है वो बता रहा है।


पहले शेर में जनाब कहते हैं कि ये दुनिया सोने की जगह नहीं है, जागते रहिए। आख़िर क्यूँ? ऐसा क्यूँ कहते हो मीर? मुझे इस मामले में ऐसा जान पड़ता है कि मीर जहाँ के किसी राज़ से वाक़िफ़ हैं और किसी भी वक़्त हम सबकी ज़िंदगी में भी एक राज़ खुलने वाला है। सो चौकन्ना रहने की ज़रूरत है। 


दूसरे शेर में कहते हैं, ज़िन्दगी में लुत्फ़ ही लाग यानी लगाव से आता है। ये क्या कि दिल है पर कुछ माँगे न, दिमाग़ है पर ख़्वाहिश न करें, ज़बान है कुछ अर्ज़ ए इज़हार न करे! सो मीर की हिदायत है कि किसी के जुल्फ़ों के गिरफ़्तार रहो चाहे जैसे रहो, उस में ही मज़ा है। 


तीसरे शेर में जनाब फ़रमाते हैं, एक चीज़ है इस जहाँ में जो हाथ ही नहीं लगती। मगर मीर कहते हैं तुम फिर भी उसके तलबगार रहो। ये Mystery क्या है जो हाथ वहीं आने वाली? वो पर्दा कौन सा है जो उठता ही नहीं। वरूण ग्रोवर का Gangs of Wasseypur का गीत ज़ेह्न में आता है,


ना मिलिहे ना मिलिहे ना मिलिहे ना... फूस के ढेर में राई का दाना, रंग बिरंगा बैल सयाना ...


और फिर उस राज़ को बिना खोले मीर शेर तमाम कर देते हैं।


आख़िरी शेर के क्या ही कहने ...


हम लोग जो जान और जहाँ का बड़ा मोल करते हैं, मीर जहाँ-ओ-जान का मोल बताते हुए ये सीख देते हैं कि जान बेच कर भी इस बाज़ारू दुनिया में दिल के ख़रीदार रहो! ये उस मीर से मुख़्तलिफ़ है जो ये कहता नज़र आता है,


जान है तो जहान है प्यारे


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हाए! क्या शेर हो गया! सीधी ज़बान में शेर है पर क्या ख़ूब है। अपने आप को हिदायत है कि बाज़ आ जा ये जो तू जब तब उसे याद करता रहता है। ये यादों की याद ज़ेह्न से कभी न जाएगी। क्यूँ नादानी पर तुला है? ज़ाहिर है मीर ने मीर की कभी नहीं सुनी। 


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ऐसे न जामे कितने दिलकश और दिल-फ़रेब अशआर मीर के ख़ून-ए-जीगर की नेमत हैं। बात बस उन्हीं के शेर से शुरुआत की जाए कि,


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मानो मीर को अपने वक़्त में ही अपने नाम का वो शोर सुनाई दे गया था जो आज सर ज़मीन-ए-हिन्द पर है।


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मीर मानते हैं कि वो मजनूँ की तरह मज़बूत दिल के नहीं हैं, यहाँ आपको मीर के poetic universe की ख़ासियत नज़र आती है। अगली ही लाइन में खुद को redeem करते हुए कहते हैं कि वो उस कमज़ोर दिल वाले के यार भी हैं। एक ओर तो खुद को मजनूँ को कमज़ोर दिल का बताते हैं तो पढ़ने वाले पर ये असर पड़ता है कि मीर कमज़ोर हैं और मजनूँ बड़ा मजबूत है। पर अगली ही लाईन में हमें मजनूँ भी उसी नाव पर सवार मिलता है जिसपर मीर और बाकी सारे आशिक सवार हैं।


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जौन एलिया साहब मीर साहब के बड़े क़द्रदान कहे जाते थे। उन्हीं का शेर है, 


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ज़िन्दगी में हस्ती और वजूद का सवाल सबसे बड़ा सवाल है, हम में से हर शख़्स परेशान है कि वो है क्यों? मीर कहते हैं कि परेशान मत कहो, होगी कुछ भी दुनिया की असलियत, तुम क्यूँ अपना मन ख़राब करते हो। जौन ने इसी बात को आगे बढ़ाते हुए ये शेर कहा होगा। 


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मीर अपनी माशूक़ा से कहते हैं,


तेरी झुकी नज़रें और तेरा झुका चेहरा, क़ुरआन है हमारा, तुझे अगर हम चूम भी लें तो हमारा ईमान क्या ही जाएगा 


सीधी साफ़ ज़ुबान में कितना प्यारा शेर कह दिया है साहब! क्या कहने! 


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समझदार लोग दीवानों को सदियों से समझाते आ रहे हैं कि समझ जाओ, सुधर जाओ, पर दीवानों ने आजतक कभी किसी की सुनी है| कही मीर साहब बयांँ कर गए हैं। 


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ये तो सच है कि आशिक़ का दिल तो बस माशूक़ की याद में रोता है पर आशिक़ अपने ग़म में औरों का ग़म तलाश लेता है। कहा जाता है ग़मों को रहने के लिए सबब के बहुत से सराय दरकार होते हैं। ये आशिक़ को दुनिया के ग़म तक खींच लाते हैं। मीर कहते हैं कि देखिए दुनिया में कुछ लोगों को क्या क्या भुगतना पड़ता है, ज़ुल्म बिना किसी सबब! ये देखिए ये जहाँ जहाँ न हुआ कोई सांस लेता रेगिस्तान हो गया। 


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बताइये, जनाब मीर साहब के लिए मुझे बुरी लग रहा है। एक तो मियाँ मीर यँ ही आँखों पर ही बैठे रहते हैं, अब आंख से छूटे कि तब आँख से छूटे! और उस पर ऐसा माशूक़! लानत है! 


हुज़ूर सच पुछिए तो पढ़कर हँसी आती है, लिखते हुए भी मीर साहब ज़रूर मुस्कुराए होंगे। 


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भाई क्या बात! दीवानगी में मीर साहब सा कोई नहीं। 


क्या ग़ुरूर है साहब! क्या कहने! 


मीर साहब के चर्चे उर्दू ज़ु़बान और अदब की महफ़िलों में नहीं होंगे तो कहाँ होंगे! अव्वल तो मीर इसमें सनद हैं और फिर ये मीर साहब ही की ज़ुबान है। मीर साहब को और पढ़ा जाए और सीखा जाए शाइरी की इस स्कूल से ज़िन्दगी के बारे में!