ग़म्ज़े ने उस के चोरी में दिल की हुनर किया
उस ख़ानुमाँ-ख़राब ने आँखों में घर किया
रंग उड़ चला चमन में गुलों का तो क्या नसीम
हम को तो रोज़गार ने बे-बाल-ओ-पर किया
नाफ़े जो थीं मिज़ाज को अव्वल सो इश्क़ में
आख़िर उन्हीं दवाओं ने हम को ज़रर किया
मरता हूँ जान दें हैं वतन-दारीयों पे लोग
और सुनते जाते हैं कि हर इक ने सफ़र किया
क्या जानूँ बज़्म-ए-ऐश कि साक़ी की चश्म देख
मैं सोहबत-ए-शराब से आगे सफ़र किया
जिस दम कि तेग़-ए-इश्क़ खिंची बुल-हवस कहाँ
सुन लीजियो कि हम ही ने सीना-सिपर किया
दिल ज़ख़्मी हो के तुझ तईं पहुँचा तो कम नहीं
इस नीम-कुश्ता ने भी क़यामत जिगर किया
है कौन आप में जो मिले तुझ से मस्त नाज़
ज़ौक़-ए-ख़बर ही ने तो हमें बे-ख़बर क्या
वो दश्त-ए-ख़ौफ़-नाक रहा है मिरा वतन
सुन कर जिसे ख़िज़्र ने सफ़र से हज़र किया
कुछ कम नहीं हैं शोबदा-बाज़ों से मय-गुसार
दारू पिला के शैख़ को आदम से ख़र किया
हैं चारों तरफ़ खे़मे खड़े गर्द-बाद के
क्या जानिए जुनूँ ने इरादा किधर किया
लुक्नत तिरी ज़बान की है सहर जिस से शोख़
यक हर्फ़-ए-नीम-गुफ़्ता ने दिल पर असर किया
बे-शर्म महज़ है वो गुनहगार जिन ने 'मीर'
अब्र-ए-करम के सामने दामाँ तर किया
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