अपना कहूँ हक़ दे भी पाएगी मुझे
या तू भी जानाँ भूल जाएगी मुझे
बस इक मुहब्बत के लिए ऐ मेरी जाँ
अब और तू कितना रुलाएगी मुझे
इस बार जो मैं तुझसे बिछड़ा मेरी जाँ
फिर दूसरी कोई न भाएगी मुझे
मैं सच में तुझसे प्यार करता हूँ समझ
अब और कितना आजमाएगी मुझे
अब तो मेरी जाँ ये दिवाली भी गई
अब कब गले से तू लगाएगी मुझे
मुझको ख़बर है मैं पराया हूँ तिरा
पर दिल लगी फिर भी सताएगी मुझे
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