अपना कहूँ हक़ दे भी पाएगी मुझे

  - Brajnabh Pandey

अपना कहूँ हक़ दे भी पाएगी मुझे
या तू भी जानाँ भूल जाएगी मुझे

बस इक मुहब्बत के लिए ऐ मेरी जाँ
अब और तू कितना रुलाएगी मुझे

इस बार जो मैं तुझसे बिछड़ा मेरी जाँ
फिर दूसरी कोई न भाएगी मुझे

मैं सच में तुझसे प्यार करता हूँ समझ
अब और कितना आजमाएगी मुझे

अब तो मेरी जाँ ये दिवाली भी गई
अब कब गले से तू लगाएगी मुझे

मुझको ख़बर है मैं पराया हूँ तिरा
पर दिल लगी फिर भी सताएगी मुझे

  - Brajnabh Pandey

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