हर गली में बात ये मशहूर है
भेष में इंसान के तू हूर है
कुछ नहीं पाने को बचता और जब
वो हसीना ज़िन्दगी की नूर है
उस से जब भी बात होने लगती है
फिर नहीं लगता सफ़र अब दूर है
तुम रगड़ लो नाक चाहे जितना भी
होगा वो जो लिक्खा बा-दस्तूर है
इक तरफ़ हर शै से दिक्कत है तुम्हें
इक तरफ़ कहते हो सब मंज़ूर है
मैं उसे दिल देने को तैयार हूँ
ख़र्चने पे मुझको जो मग़रूर है
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