मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
मुझे सँभाल ले मुमकिन है दर-ब-दर हो जाऊँ
ये आब-ओ-ताब जो मुझ में है सब उसी से है
अगर वो छोड़ दे मुझ को तो मैं खंडर हो जाऊँ
मिरी मदद से खुजूरों की फ़स्ल पकने लगे
मैं चाहता हूँ कि सहरा की दोपहर हो जाऊँ
मैं आस-पास के मौसम से हूँ तर-ओ-ताज़ा
मैं अपने झुण्ड से निकलूँ तो बे-समर हो जाऊँ
बड़ी अजीब सी हिद्दत है उस की यादों में
अगर मैं छू लूँ पसीने से तर-ब-तर हो जाऊँ
मैं कच्ची मिट्टी की सूरत हूँ तेरे हाथों में
मुझे तू ढाल दे ऐसे कि मो'तबर हो जाऊँ
बची-खुची हुई साँसों के साथ पहुँचाना
सुनो हवाओ अगर मैं शिकस्ता-पर हो जाऊँ
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