हमारे दिल को क्यों जी तुमने तंबूरा बनाया है

  - Nityanand Vajpayee

हमारे दिल को क्यों जी तुमने तंबूरा बनाया है
नचाते उँगलियों पर जैसे जम्बूरा बनाया है

वो जो पत्थर हमारे सर पे मारा फेंककर तुमने
उसी से हमने अपने घर का कंगूरा बनाया है

अधूरा प्यार था कोई कि इकतरफ़ा मुहब्बत थी
हमारी शाइरी ने लो उसे पूरा बनाया है

बचा ही मैं कहाँ दिलबर मेरे भीतर कहीं भी अब
तुम्हारी चाहतों ने इस क़दर चूरा बनाया है

हज़ारों आशिक़ों में सबसे पहली सफ़ में मैं ही था
मगर उस बेवफ़ा ने राह का घूरा बनाया है

मैं उन सहराओं में इतने दिनों तक घूमा हूँ उपमन्यु
लिपट कर रेत ने मुझ काले को भूरा बनाया है

  - Nityanand Vajpayee

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