गली में तेरी मेरे इश्क़ के निशान भी हैं
कहीं पे रेंग बनीं तो कहीं उड़ान भी हैं
हज़ारों घाव किए हैं मेरे कलेजे में
नज़र ये तीर तेरी और भँवें कमान भी हैं
लगा दी आग मुहल्ले में हुस्न ने तेरे
अब इसकी ज़द में कई दिल हैं और जान भी हैं
दिए कि लौ से दहकते हुए हैं लब दोनों
क़रीब में जो उगे तिल लबों की शान भी हैं
झुके हैं क़दमों में सब चाँद और सितारे भी
बदन की ख़ुशबू गुलाबों के गुलिस्तान भी हैं
तेरे ज़माल की तस्वीर खींच दी मैंने
मेरी क़लम में हैं आँखें ज़बाँ है कान भी हैं
वो अस्ल इश्क़ बुढ़ापे में कारगर होगा
ख़ुमार ज़ेहन में तो हम अभी जवान भी हैं
ख़ुदा की पाक़ इबादत सा इश्क़ हो तो सही
वगरना 'नित्य' यहीं जिस्मों की दुकान भी हैं
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