चलो दुश्मनों को भी अपने दुआ दें
जो नफ़रत है दिल में उसे अब मिटा दें
बिछाते हैं जो लोग रस्तों में काँटे
हम उनकी डगर में गुलों को बिछा दें
मुहब्बत ही उद्देश्य है ज़िन्दगी का
चलो प्यार से सबको जीना सिखा दें
बहुत है अँधेरा यहाँ नफ़रतों का
ज़रा प्यार का एक दीपक जला दें
भटकती है इंसानियत दर बदर जो
मुक़द्दर का इसको सिकंदर बना दें
जड़े सच-ज़ुबानी पे ताले जो मोटे
उन्हें तोड़ दें सबको सच की शिफ़ा दें
बहुत दहशतों ने किया हमको रुस्वा
तो हिम्मत करें दहशतों को मिटा दें
वो मज़लूम फ़ुटपाथ पर जो सिसकते
उन्हें रोटियाँ और कपड़े दिला दें
हैं जिनकी मुँडेरों पे प्यासे परिंदे
उन्हें चाहिए छत पे पानी रखा दें
हुई मुझ से गुस्ताखियाँ जो अभी तक
मैं ख़ुद माँगता हूँ मेरे रब सज़ा दें
नहीं 'नित्य' को और कुछ चाहिए बस
जो भूखे मिलें उनको भोजन करा दें
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