ऐसी हालत है मेरे दिल की तेरे जाने पर
जैसे गुलशन का समाँ फूलों के मुरझाने पर
हिज्र की धूप मुझे ख़ूब जलाती है मगर
वस्ल का चाँद निकलता है तेरे आने पर
यूँ न बिखरा तू हवाओं में ये गेसू अपने
दिल मचलता है तेरी ज़ुल्फ़ों के बल खाने पर
मौत भी कर नहीं सकती है जुदा दोनों को
रूह मरती नहीं इंसान के मर जाने पर
मुझको मयख़ाने की जानिब न धकेलो यारों
मैं बिखरता ही चला जाता हूँ बिखराने पर
अच्छे अच्छों को बिखरते हुए देखा हमने
राह-ए-उल्फ़त में 'रचित' हिज्र के आ जाने पर
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