उड़ रहे हैं सब परिंदे घर सजाने के लिए
हम ने भी तो जाने से पहले कई वादे लिए
आख़िरस मैं कौन से मुखड़े पे करता एतबार
वो जब आया भी तो आया चहरे पर चहरे लिए
तुम मुहब्बत से नवाज़ो नफरतों को भी कभी
कीजिए साया कभी सूखे दरख़्तो के लिए
मेरे दरवाज़े पे दस्तक होगी तेरी एक दिन
ख़्वाब ठहरें हैं इन आँखों में कई लम्हे लिए
मैं जहाँ से लौट आया था सफ़र में हारकर
बस ख़डी थी ज़िंदगी उस मोड़ पर मेरे लिए
एक घर सूखा पड़ा था मुद्दतों से शहर में
दूर से आई है बारिश फिर से नज़राने लिए
इक किनारा ख़ामुशी से देखता है जब मुझे
तब मचलता है समंदर पानी में लहरे लिए
कोई सुनता ही नहीं है ख़ामुशी की जब सदा
'राज' क्यों सब दर-ब-दर फिरते हैं आवाज़े लिए
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