जब अगले साल यही वक़्त आ रहा होगा - Riaz Majeed

जब अगले साल यही वक़्त आ रहा होगा
ये कौन जानता है कौन किस जगह होगा

यही जगह जहाँ हम आज मिल के बैठे हैं
इसी जगह पे ख़ुदा जाने कल को क्या होगा

यही दमकते हुए पल धुआँ धुआँ होंगे
यही चमकता हुआ दिल बुझा बुझा होगा

हम अपने अपने बखेड़ों में फँस चुके होंगे
न तुझ को मेरा न मुझ को तिरा पता होगा

तू मेरे सामने बैठा है और मैं सोचता हूँ
कि आए लम्हों में जीना भी इक सज़ा होगा

बिछड़ने वाले तुझे देख देख सोचता हूँ
तू फिर मिलेगा तो कितना बदल चुका होगा

लहू रुलाएगा वो धूप छाँव का मंज़र
नज़र उठाऊँगा जिस सम्त झुटपुटा होगा

यही ज़मीन जो अब पाँव चूमती है 'रियाज़'
इसी ज़मीन के नीचे तू सो रहा होगा

- Riaz Majeed
6 Likes

Similar Writers

our suggestion based on Riaz Majeed

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari