तुम हो कली कश्मीर की कोई फ़ना हो जाएगा
रब देख ले तुझको अगर वो भी फ़िदा हो जाएगा
साहिब बहाने से गया मैं बारहा उसकी गली
दिख जाये गर शोला बदन कुछ तो नफ़ा हो जाएगा
कोरा दुपट्टा बांध लो पतली कमर के खूंट से
सरकी अगर ये नाज़ से मौसम ख़फ़ा हो जाएगा
शीशे से नाज़ुक हुस्न पर ज़ालिम बड़ी मग़रूर है
दो पल की है ये नाज़ुकी फिर सब हवा हो जाएगा
कोई मुसाफिर भूल कर जाये उधर तो रोक लो
आएगा फिर ना लौट कर वो गुमशुदा हो जाएगा
पैसे के पीछे भागते इंसान को मत रोकिये
थक जायेगा फिर हारकर ख़ुद ही जुदा हो जाएगा
शैदाई सारे हैं यहाँ तू ‘सारथी’ की है ग़ज़ल
घूँघट उठाकर देख लो सबका भला हो जाएगा
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