हिस्से आया जिनके भी याँ पासों का दुख
सिर्फ़ वो ही जान पाये पाँचों का दुख
क़त्ल बेटी का कभी करते नहीं लोग
गर यहाँ वो जान पाते माँओं का दुख
लोग हँसते हैं झुके शानो पे अक्सर
बस पिता ही जानते हैं काँधों का दुख
लोगों की नज़रों में आँखें लाल हैं बस
सिर्फ़ आसूँ जानते हैं आँखों का दुख
द्यूत का ही हिस्सा हैं लोगों की ख़ातिर
पाँडवों को ही पता है पाँसों का दुख
ज़िंदगी जिनकी टिकी हो जाँच पे वो
बेटियाँ ही जानती हैं जाँचों का दुख
आदमी को आदमी डसने लगा है
आदमी क्या जाने अब याँ साँपों का दुख
है ज़रूरी कितनी जीने के लिए साँस
मरने वाला जानता है साँसों का दुख
खिन्न हैं याँ बोलबाला झूठ का देख
झूठा क्या जाने यहाँ अब साँचों का दुख
गुस्से में जो भींचते हैं मुठ्ठी हर बार
सिर्फ़ उनके होंठ जाने दाँतों का दुख
उम्र भर करते हिफ़ाज़त जो गुलों की
गुल भी नइँ याँ जान पाए काँटों का दुख
वाहवाही का अमीरी लेती है लुफ़्त
मुफ़लिसी के हिस्से आया डाँटों का दुख
भरभरा कर गिर गए पुस्तैनी घर-बार
जब पहाड़ों को ले डूबा बाँधों का दुख
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