चारसू जब चारागर हैं घाव क्यों जाता नहीं

  - Shan Sharma

चारसू जब चारागर हैं घाव क्यों जाता नहीं
क्या सितम है दर्द मेरा चैन क्यों पाता नहीं

एक रूठी सी हँसी है होंठ पे ठहरी मिरे
एक आँसू ख़ुशनुमा है आँख से जाता नहीं

शक़्ल तेरी भी ज़रा बदली हुई सी लग रही
मिल रहा हूँ मैं भी यूँ जैसे कोई नाता नहीं

आज बादल के सहारे उसने ख़त भेजा हमें
आसमाँ क़ासिद है कैसा लफ़्ज़ बरसाता नहीं

चार घंटे तीस मिनटों में मिलो उसने कहा
बदनसीबी के घड़ी का चल रहा काँटा नहीं

मेरा हाफ़िज़ मेरा मुर्शिद ' शान ' तू है बन गया
इश्क़ सजदे से जुदा मुझको नज़र आता नहीं

  - Shan Sharma

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