कई लोगों से बेहतर हँस रहा है
अगर तू अपने ऊपर हँस रहा है
दशानन के अहम को तोड़कर के
बहुत छोटा सा बंदर हँस रहा है
मुझे कोई नहीं ख़त भेजता अब
मेरी छत का कबूतर हँस रहा है
मुक़द्दर पर ये मेहनत हँस रही है ?
या मेहनत पर मुक़द्दर हँस रहा है ?
हज़ारों ग़म हैं उसकी ज़िन्दगी में
मगर फिर भी सुख़न-वर हँस रहा है
कहा मैंने कि दुनिया जीतनी है
न जाने क्यों सिकन्दर हँस रहा है
As you were reading Shayari by Tanoj Dadhich
our suggestion based on Tanoj Dadhich
As you were reading undefined Shayari