काश ये, ज़िंदगी नहीं होती
फिर कहीं, ख़ुद–कुशी नहीं होती
उसको गर, बोलने दिया जाता
इस तरह, बोलती नहीं होती
एक ऐसी बला, मोहब्बत है
जो कभी, मुल्तवी नहीं होती
चोट जो, दिल लहू लहू कर दे
चोट वो, बाहरी नहीं होती
आरज़ू, आरज़ू ही होती है
पहली या आख़िरी नहीं होती
मतलबी दोस्तों के होने से
दोस्ती, मतलबी नहीं होती
रात दिन मय–कशी तो होती है
रात दिन बे–ख़ुदी नहीं होती
यार हम आशिक़ी तो क्या करते
हम से जब शायरी नहीं होती
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