बिजलियाँ दिल पे निगाहों से गिराया न करो
बे-हिजाबाना कभी बाम पे आया न करो
मिल गई आँख से जब आँख तो कुछ बोल भी लो
तुम जो ख़ामोश हो ये ज़ुल्म है, ढाया न करो
निकहत-ए-ज़ुल्फ़ से महकी है मोहब्बत की फ़ज़ा
ख़ुश्बू-ए-गुल को तुम आँचल में छुपाया न करो
आह से उनकी हुकूमत न पलट जाए कहीं
हुक्मराँ हो के फ़कीरों को सताया न करो
यूँ जो तुम देखते हो चाँद को, यह ठीक नहीं
जगमगाते हुए तारों को जलाया न करो
सुन के बादल के गरजने की सदा तुम 'मुश्ताक़'
अपने अंदर कोई तूफ़ान जगाया न करो
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