ध्यान तेरा जहाँ गया ही नहीं
कोई मंज़र वहाँ बना ही नहीं
ज़िंदगी भर मैं शेर कहता रहा
तेरे ग़म का असर गया ही नहीं
साथ आती है उस के उस की बहन
अब मुलाक़ातों का मज़ा ही नहीं
मुझ को शायर बना गया यही दुख
इश्क़ मुझ से किसी को था ही नहीं
दिल चुराना वो ख़ूब जानती थी
उस का जादू इधर चला ही नहीं
माज़रत ऐ मेरे ख़ुदा कि मेरा
तेरी दुनिया में दिल लगा ही नहीं
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