इस जहाँ के वास्ते ख़तरा है इंसान
सौ दरिंदे हैं यहाँ पहला है इंसान
जानवर बनने के लायक़ भी नहीं जो
ऐसे ऐसों को बना रक्खा है इंसान
कहना बनता तो नहीं पर कह रहा हूँ
उस ख़ुदा की फालतू रचना है इंसान
उस को फिर बर्बाद कर के छोड़ता है
जिस भी दुनिया में क़दम रखता है इंसान
इन दरख़्तों से हवा से और ख़ुदा से
अपनेे मतलब के लिए मिलता है इंसान
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