जगह नफ़रत बना लेती है कैसे भी मुहब्बत में,
बड़े दिन तक रखो तो कीड़े पड़ जाते हैं शरबत में,
बरस पहले गई थी और बच्चा इक महीने का,
मेरा तो दिल लगा है आज भी ख़ुद की मरम्मत में,
ख़ुदा माना नमाज़ी है मियाँ उसका मगर फिर भी,
सुना था हूर मिलती है अजल के बाद जन्नत में,
किसी को हुस्न या तो अक्ल देता है वो उजलत में,
इन्हीं बस बे-वफ़ाओं को बनाता क्यों है फ़ुर्सत में,
हाँ जब अंगूर को तरबूज़ लिख सकता है इक शाइर,
ग़लत-फ़हमी है लोगों को लिखा होगा ये नफ़रत में
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