मैं जो नींदों में भी कह दूँ हो जाता है सच्चा शेर
सोच-समझ कर मगर कहूँगा दिल पर लगने वाला शेर
अब तक कहता आया था मैं यारों बिल्कुल कड़वा शेर
सुन कर जिस को दाद मिलेगी आज कहूँगा ऐसा शेर
पिछले वाले शेर में यूँ तो बात कही थी मैंने ख़ूब
हाँ लेकिन उस शेर से भी आला होगा ये वाला शेर
आज भिड़ेंगे आपस में जब देखेंगे जीतेगा कौन
मेरा सब से हल्का शेर या तेरा सब से अच्छा शेर
मेरी हर इक बात को तुम ने हर-दम हँस कर टाला है
कह तो दूँ मैं तुम पर लेकिन हो न कहीं ये ज़ाया शेर
मेरे मिसरे मेरी बातें उलट-पुलट कर पढ़ते हैं
आज तमाम इन नक़्कालों को नज़्र करूँगा अपना शेर
आग लगी है साँसों में जब भी छींकूँ अंगार उठे
बातें जब मेरी ऐसी हैं सोचो कैसा होगा शेर
बात अमान अब हिम्मत पर आयी है तो फिर देखेंगे
कौन लड़ेगा आख़िर तक मेरा चीता या तेरा शेर
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