कभी गोपी को छेड़ा था कभी मक्खन चुराए थे
कभी वो मौन धारण थे कभी बंसी बजाए थे
हुए अर्जुन अगर तन्हा तो कान्हा ने हिदायत दी
यही तो धर्म है बंदे महाभारत हराए थे
भटकता मन बड़े चंचल यशोदा के दुलारे थे
वही अवतार हैं जिसने यहाँ गोकुल बसाए थे
मोहब्बत हो गई जिनसे उन्हें भूले नहीं थे वो
यही तो ख़ासियत थी उनकी वो दिल में समाए थे
पुजारिन हूँ जी मोहन की दिवानी हूँ जी मोहन की
यहाँ मीरा तरसती थी वहाँ वो भी सताए थे
हमारा मन नहीं लगता बड़ी बेचैन रहती हूँ
हमें पागल किया कान्हा हमारे घर को आए थे
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