जहाँ चलती नहीं मर्ज़ी हमारी
कहानी ऐसी क्यूँ लिक्खी हमारी
हुआ अच्छा जो वो मिलने न आया
थी नीयत भी नहीं अच्छी हमारी
कभी तुम ख़्वाब में आकर तो देखो
लगी चलने है अब बच्ची हमारी
बिछड़ कर हमसे वो ख़ुश है अगर तो
मोहब्बत थी नहीं सच्ची हमारी
रही है इश्क़ में कुछ ऐसी क़िस्मत
मरी है डूब कर मछली हमारी
रक़ीब आकर फिर एक दिन मुझसे बोला
चलो ख़ाली करो गद्दी हमारी
वो उसका बात करने का बहाना
दिखाओ खोल कर मुठ्ठी हमारी
हमें ख़ैरात में सब मिल रहा था
फटी नीचे से थी झोली हमारी
यहाँ दुश्वार है सोना हमारा
तुम्हें लगता कि है चाँदी हमारी
गले से लग ही जाओ तुम ये कह कर
अरे तुम जान हो "बाग़ी" हमारी
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