बदन, मिट्टी, हवा, पानी किसानी से
बिना पैसे के गुड़-घानी, किसानी से
वबा का दौर, लेकिन जी रहे हैं सब
जिये जाने में आसानी किसानी से
यूं समझो शह्र की साँसें हमीं से है
ख़ुशी का रंग फिर धानी, किसानी से
तुम्हारे बाद वैसे भी बचा था क्या?
मिरी आंखों में ताबानी , किसानी से
यहाँ तक तो इबादत थी , सुनो आगे
निगहबानी से यज़्दानी , किसानी से
लटें उलझी,कटारी नैन, और फिर नथ
मिला है चाँद का सानी , किसानी से
वो इक लड़की! वो जो है धान की बाली
हसीं मंज़र बदन-ख़्वानी, किसानी से
क़फ़न का लाश से जो है वही है 'नीर'
नया रिश्ता ये जिस्मानी , किसानी से
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