क़रार दिल को मिरे रात–भर नहीं आया
नज़र वो चाँद मुझे ता–सहर नहीं आया
जो एक शख़्स कभी साथ छोड़ कर न गया
गया वो शख़्स तो फिर लौट कर नहीं आया
मुझे दिखा तो फ़क़त प्यार उसकी आँखों में
नज़र में उसकी था क्या वो नज़र नहीं आया
मैं जंग जीत गया पर रहा मलाल यही
कि जंग लड़ने वो सीना-सिपर नहीं आया
कहा था मैंने वो लड़का सही नहीं लेकिन
यक़ीन उसको मिरी बात पर नहीं आया
वो किससे मिलने भला बन-सँवर के जाता है
जो हमसे मिलने कभी बन-सँवर नहीं आया
दिखा था ख़्वाब में वो रास्ता मुझे जिसपर
चला बहुत मैं मगर यार घर नहीं आया
तमाम उम्र मुहब्बत में बे–वफाई की
तमाम उम्र हमें ये हुनर नहीं आया
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