हर पल इक पागल की ख़ातिर
ख़्वाब सजाये कल की ख़ातिर
जिस पल में जीनी थीं सदियाँ
आया वो इक पल की ख़ातिर
बेच गिटार हुआ दीवाना
तेरी इस पायल की ख़ातिर
ले आये दिल बुनकर अपना
सर्दी में कम्बल की ख़ातिर
ठुकरा दी है जग की दौलत
इक तेरे आँचल की ख़ातिर
ग़ालिब की गलियों में हम भी
भटके नज़्म ग़ज़ल की ख़ातिर
क़ैद किया वारिद को हमने
आज तिरे काजल की ख़ातिर
रहती है अनबन पेड़ों में
उस मीठी कोयल की ख़ातिर
मोड़ लिया मुँह सब रागों से
नदियों की कल कल की ख़ातिर
ज़ुल्म सहे कीचड़ के हमने
उस महबूब कमल की ख़ातिर
किसको अपना समझे धरती
जोगिन है बादल की ख़ातिर
आज हुई दिल से गुस्ताख़ी
छोड़ दिया सब कल की ख़ातिर
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