पत्तों की तरह टूट के गिरकर भी चल दिए
इतना बहुत है आप कि अधभर भी चल दिए
उसने कहा तो फूल खिले बारिशें हुईं
उसने कहा तो राह के पत्थर भी चल दिए
मसरूफ़ था वो ख़ुद में सो उसको नहीं दिखा
कुछ लोग उसकी बज़्म से उठकर भी चल दिए
आख़िर कुछ अपने ज़ख़्मों की मिट्टी भी नम हुई
आख़िर ये सहरा आँखों के सागर भी चल दिए
रस्मों के नाम पर हुआ सौदा विदाई पे
बेटी के साथ माँई के ज़ेवर भी चल दिए
सामान बाँधकर जो मैं निकला तो साथ में
बरसों तुझे लिखे गए लेटर भी चल दिए
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