दिल के वीराने में ख़ुद को यूँ जगाया है

  - Lalit Mohan Joshi

दिल के वीराने में ख़ुद को यूँ जगाया है
तेरी यादों को सहारा जो बनाया है

इक उसी की याद हमको यार है आती
सो उसी को ख़्वाब में हमने बसाया है

दर्द हर पल बोलता होगा नहीं शायद
तब यूँ आब-ए-तल्ख़ को हमने छुपाया है

रात तन्हाई में दिन हँसते गुज़ारा है
इस सिनेमा को सिनेमा-घर चलाया है

कब मिलेगा दर्द से आराम हमको अब
फिर ललित ने इक ग़ज़ल को गुनगुनाया है

  - Lalit Mohan Joshi

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