है यही उलझन , यही है बेबसी

  - Prashant Sitapuri

है यही उलझन , यही है बेबसी
हम कहाँ को और जायें किस गली

दिन गए जब थे दिवाने हम तिरे
अब नहीं है यार कोई तिश्नगी

सबको नीचा ही दिखाना है उसे
और कर ही क्या सका है आदमी

उसको भूलो वो पुरानी बात है
अब तो अच्छी कट रही है ज़िन्दगी

भाग कर आना किसी मैंदान से
और क्या होगी सिवाये बुजदिली

जिस तरह देखा है मैंने आपको
दुश्मनी से भी बुरी है दोस्ती

'जौन' पीछे रह गए तो क्या हुआ
मैं करुँगा बात सबसे काम की

  - Prashant Sitapuri

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