तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ
मैं अब ख़ुद को गँवाना चाहता हूँ
मुहब्बत ने बहुत तक़लीफ़ दी है
मैं सच मुच दिल लगाना चाहता हूँ
बहुत देखा ख़ुशी का साथ देकर
मैं अब ग़म आज़माना चाहता हूँ
मनाने में कमी की थी न लेकिन
मैं अब ख़ुद रूठ जाना चाहता हूँ
बहुत ही भीड़ है दिल में तेरे अब
मैं अपने दिल में आना चाहता हूँ
उठाया बोझ साँसों का अब अपना
जनाज़ा भी उठाना चाहता हूँ
मिला ग़म फिर भी ज़िंदा हूँ मैं अब तक
वो क्या है अब जो पाना चाहता हूॅं
बहुत ख़ुशियाँ उसे मैंने दी लेकिन
मैं अब ख़ुद मुस्कुराना चाहता हूॅं
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