अपना क्या है हम तो साहब कुछ भी कहते बोलते हैं
लोग शातिर हैं बड़ा ही, जो समझके बोलते हैं
वस्ल में अंधा है कोई, हिज़्र में बाग़ी है कोई
सब्ज़ पत्ते बे - ज़बाँ हैं ख़ुश्क पत्ते बोलते हैं
जलवों के दम पर चलाती थी जिसे तू पागलों सा
नाम उसका चल रहा है और जलवे बोलते हैं
क्या कमी है साथ चलने वालों की तुझको यहां अब
तेरी इक आवाज़ पर ख़ामोश रस्ते बोलते हैं
कब तलक अटके रहोगे, कब लबों को चूमना है?
गाल चूमूँ तो मुझे ये उसके झुमके बोलते हैं
क्या तुम्हारा भी कभी झगड़ा हुआ है इनसे भाई ?
या हमारे सामने ही घर के शीशे बोलते हैं
पीर इक इक हर्फ़ की है जान 'आरुष को पता, और
लोग कहते हैं कि आरुष शे'र अच्छे बोलते हैं
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