दिल मेरा जिनकी यादों का मरकज़ बना हुआ
उन मुस्कुराती झील सी आँखों का क्या हुआ
उसने मज़ाक़ में कहा जाऊँगी छोड़ कर
सच हो रहा है देखो सब उसका कहा हुआ
ये ज़ख़्म ए हिज्र भी न बहुत ही अजीब है
जितना भी भरना चाहा ये उतना हरा हुआ
जब उसके दिल में उतरा तो तब ये पता चला
पहले से था वहाँ कोई नक़्शा बना हुआ
कब चाहता था होना मोहब्बत में मुब्तला
मुझसे ये काम भी हुआ तो बा ख़ता हुआ
हम थे के हो सके न मयस्सर ख़ुदी को भी
वो थे के उनका यारों ख़ुदा भी सगा हुआ
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