मुझे हर रोज़ तोहफ़े में वो गुल भेजा करेगा
कि काँटों पर यूँ अपना ख़ून वो ज़ाया करेगा
तुम्हारे बा'द मैं ये सोचती रहती हूँ हर-दम
मिरी तन्हाइयों को कौन अब अपना करेगा
ये चाहत थी कि हो इक चाँद मेरे आस्माँ में
न होगा तू अगर तो कौन ये पूरा करेगा
जलाए ख़त मिटाया टैटू मेरे नाम का भी
भुलाने को मुझे अब और तू क्या क्या करेगा
तुझे मैं भूल जाऊँ बस यही मैं चाहती थी
मुझे मालूम था ये दिल मगर उल्टा करेगा
तस्सवुर का सफ़र तूने चुना ये क्यों 'तबस्सुम'
वो तेरे ख़्वाब में अब हर घड़ी जागा करेगा
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